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महाराणा प्रताप का इतिहास

तो आज मित्रो आज हम जानेंगे महान योद्धा महाराणा प्रताप जी के बारें में।
  महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम  इतिहास के पन्नों में अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुग़ल सम्राट अकबर के साथ संगर्ष किया और उन्हें कई बार युद्ध मैं भी हराया। वे बचपन से ही शूरवीर, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया। यह देखते हुए अकबर नें कुल 4 बार अपने शांति दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा। राजा अकबर के शांति दूतों के नाम थे जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल।

मेवाड में हुआ हल्दीघटी का युद्ध 


हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।
कई मुश्किलों/संकटों का सामना करने के बाद भी महारण प्रताप ने हार नहीं माना और अपने पराक्रम को दर्शाया इसी कारण वश आज उनका नाम इतहास के पन्नो पर चमक रहा है।
कुछ इतिहासकार कुछ ऐसा मानते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए है। अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया।
महाराणा प्रताप के प्रिय बहादुर घोड़े  चेतक की मृत्यु भी इस युद्ध के दौरान हुई।

महाराणा प्रताप और चेतक के विषय में कुछ बातें



चेतक महाराणा प्रताप का सबसे प्यारा और प्रसिद्ध घोडा था। उसने हल्धि घटी के युद्ध के दौरान अपने प्राणों को खो कर बुद्धिमानी, निडरता, स्वामिभक्ति और वीरता का परिचय दिया। चेतक की वह बात भी बहुत यादगार है जिसमे उसने मुगलों को पीछे आते देख महाराणा प्रताप की रक्षा करने के लिए बरसाती नाले को लांघते समय वीरगति की प्राप्ति हुई।

महाराणा प्रताप के जीवन की कुछ अन्य मुख्य घटनाएँ 

महाराणा प्रताप और अकबर 

सन 1579-1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे और दूसरी तरफ वीर महाराणा प्रताप भी एक के पश्चात एक गढ़ जीतते जा रहे थे और राजा अकबर भी इसके कारण पीछे हटते जा रहे थे और धीरे-धीरे मेवाडों पर मुगलों का दवाव हल्का पड़ता चले गया।
मुगलों को दबते देख सन 1585 में महाराणा प्रताप नें अपने प्रयत्नों को और भी सफल बनाया जब उन्होंने तुरंत ही आक्रमण कर उदयपूर के साथ-साथ 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से अपना अधिकार स्थापित कर लिया

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई ,,?

उसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुविधाओं में जुट गए परन्तु 11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई।
एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए।

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